बीमारियों के महँगे होते इलाज से थर्राए नागरिक
*एक समय था जब लोग आयुर्वेद और यूनानी इलाज के साथ घरेलू नुस्खों के लम्बे इलाज और परहेज़ आदि से इतर जल्द ठीक होने की चाह में डॉक्टर के पास जाना शुरू किया शीघ्र आराम पाने चलन ने आयुर्वेद,यूनानी पद्यति को जैसे पराया कर दिया जीवनशैली में आये बदलाव के कारण बढ़ती बीमारियों से डॉक्टर्स की संख्या में भारी इज़ाफ़ा हुआ मानव सेवा ने आज एक बड़े व्यवसाय का रूप ले लिया है वह ज़माना गया जब अस्प्ताल को तलाश किया जाता था आज अस्पताल मरीजों की खोज में हैं भारी निवेश के बाद खड़ी हुई अस्प्ताल की बिल्डिंग को मरीज़ के साथ --साथ नई बीमारियों की भी ज़रूरत है*
*हॉरर फिल्मों के थियेटर जैसे हो गये अस्पतालों के चिकित्सक अंग्रेज़ी ज़माने के अधिकारियों जैसा रवैया अपनाये हुवे हैं महँगे टेस्ट, महँगी दवाईयां,हज़ारों की परामर्श फ़ीस कल्पना मात्र से ही सिहरन दौड़ जाती है ।*
*आधे अधूरे विश्वास के साथ अस्पताल पहुंचे मरीज़ के जल्द ठीक हो जाने की कोई गारंटी नहीं वहाँ नहीं है आधा समय रिसेप्शनिस्ट और आधा चिकित्सक महोदय ने दिया बाकी सारा ज़िम्मा लेब्रोटरी वाले का है किसी प्रकार वापस घर पहुँचे मरीज़ के परिचितों के मुफ़्त मशविरे उससे भी भारी थे एक आध तो झाड़ फूँक करने वाले और तांत्रिक को भी साथ ले आये आज भी वही स्मरण हो रहा था जब बुख़ार का मतलब दवा नहीं केवल लम्बा आराम था अब तो बीमारी से ज़्यादा इलाज से डर लगता है।